गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga)
ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ और अशुभ योगों का वर्णन किया गया है| शुभ योगों में गजकेशरी योग को अत्यंत शुभ फलदायी योग के रूप में जाना जाता है| गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga) को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में उपस्थित होता है उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी अभाव नहीं खटकता है। इस योग के साथ जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर धन, यश, कीर्ति स्वत: खींची चली आती है। जब कुण्डली में गुरू और चन्द्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। हलांकि अकारक होने पर भी फलदायी माना जाता परंतु यह मध्यम दर्जे का होता है। चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेशरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चन्द्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है। कभी-कभी इन ग्रहों कि क्षमता कम होने पर जैसे ग्रह के बाल्या, मृता अथवा वृद्धावस्था इत्यादि में होने पर इस योग के प्रभाव को बढ़ाने हेतु ज्योतिषीय उपाय करने से इस राजयोग में वृद्धि होती है एवं व्यक्ति और अधिक लाभ प्राप्त कर पाता है | |
ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्र सम्बंधित सभी समस्याओं का सुनिश्चित समाधान
भारतीय ज्योतिष शास्त्रविदों का मानना है कि जातक कि कुंडली एवं समय-समय पर बदलने वाली ग्रहों कि दशाएं, जिनकी सही-सही पहचान से व्यक्ति भावी शुभ-अशुभ घटनाओं को सरलता पूर्वक जान सकता है | इस प्रकार के ज्ञान से व्यक्ति घटनाओं के घटित होने से पूर्व ही सचेत होकर, परिस्थितियों के अनुकूल चलकर एवं कुछ शास्त्र सम्मत ज्योतिषीय उपाय कर अपने लौकिक जीवन को सफल बना सकता है | मनुष्य में जो सोचने समझने कि योग्यता है उसके फल स्वरुप उसे अपने भविष्य कि चिंता अनादि काल से सताता रहा है | वर्तमान कि चिंताओं के अतिरिक्त, उसे इस बात कि बड़ी जिज्ञासा रही है कि भविष्य में उसका क्या होने वाला है ? अतः ज्योतिष विज्ञान ही मात्र एक ऐसा संसाधन है जिसे माध्यम बनाते हुए व्यक्ति भविष्य में आने वाले शुभाशुभ समय का पता कर कुंडली में ग्रहों के अनुसार दान, हवन, जप, पूजन, रत्न धारण इत्यादि कर ईश्वरीय शुभ फल का लाभ प्राप्त कर सकता है |
जिन प्राकृतिक घटनाओं से मनुष्य का पहला-पहला साक्षात्कार हुआ उनके प्रेरक तत्वों के रूप में खगोलीय घटनाओं का अत्यंत प्रमुख योगदान रहा है ग्रहों, उपग्रहों, नक्षत्रों, निहारिकाओं की स्थितियां और ब्रह्माण्ड की विभिन्न घटनाएं निरंतर मनुष्यों के उत्सुकता का केंद्र रही है | अत्यंत प्राचीन काल से विशेषकर भारतियों ने इस दिशा में अत्यंत सराहनीय कार्य किया है और ऋग्वेद तक में काल गणना आदि के संकेत मिलते हैं | बाद में इसे ज्योतिष शास्त्र के रूप में अभिहित किया गया | आश्चर्यजनक रूप से आज भी जिन दो सर्वाधिक प्रमुख क्षेत्रों जैसे कंप्यूटर साइंस और अंतरिक्ष विज्ञान आदि में भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है, वे दोनों ही काफी हद तक इसी काल-गणना और खगोलीय विज्ञान के ही विकसित रूप हैं |
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