किसी ज्योतिषी से अधिकांश लोगों का यह प्रश्न होता है कि अमुक कुण्डली वाले जातक का विवाह किस आयु में एवं किस दिशा में होगा| उपरोक्त विवरण के अनुसार फलाफल जान लेने मात्र से ही निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता| उदाहारण के तौर पर सबसे महत्वपूर्ण है कि स्त्री पुरुष का विवाह बंधन प्रायः विवाह योग्य लड़के व लड़की के गुणों का मिलान करके विवाह तय कर दिया जाता है जो ना काफी है भारतीय ज्योतिष के अनुसार गुणों के मिलान भर से ही यह नहीं कहा जा सकता की विवाहित जीवन सफल होगा क्योंकि गुण मिलान केवल जन्म के समय उपस्थित नक्षत्रों के आधार पर होता है, कुण्डलियाँ ग्रहों के हिसाब से होती हैं| अतः अलग-अलग चौबीस घंटे में एक नक्षत्र एक राशि होती है, लेकिन नक्षत्र के चरण भिन्न हो जाते हैं और बारह लग्न होने के कारण १२ लग्न कुण्डलियाँ बनती हैं | इस प्रकार नक्षत्र तो एक ही हुआ लेकिन कुण्डलियाँ उनके भाग्य भिन्न-भिन्न फलाफल वाले हो जाते हैं अतः कुण्डलियों का मिलान करना अत्यंत आवश्यक होता है मात्र लड़का या लड़की के गुण मिलान से ही सफलता की गारंटी नहीं हो सकती इसके लिए कुण्डलियों का मिलना अति आवश्यक होता है गुण तो माना की २८ से ३० तक मिल गए और कुण्डलियों में दोष है तो वैवाहिक जीवन में असफलता व कटुता सुनिश्चित होती है उदहारण देखे गए हैं की मंदिर में या किसी अल्पज्ञानी जोतिषियों से गुण-मिलान के आधार पर विवाह हो गया तत्पश्चात सारा जीवन १०-१२ गुणों के ही मिलने वाले जातकों का विवाहित जीवन सुखी होता है कारण की उनकी कुण्डलियाँ मिल रही होती हैं| अतः किसी योग्य ज्योतिषी के द्वारा कुंडली मिलान कराकर ही विवाह करना चाहिए|
ज्योतिष के अनुसार विवाह का समय
१. लग्नेश और सप्तमेश की स्पष्ट राश्यादी के योग तुल्य राशि में जब गोचरीय वृहस्पति आता है तब उस जातक का विवाह काल समझाना चाहिए| २. शुक्र और चन्द्रमा में जो बली हो तथा जिसकी दशा पहले आति हो उसकी महादशा और गुरु के अंतर में विवाह बेला समझनी चाहिए| ३. दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में विवाह समझना चाहिए| ४. सप्तमेश की महादशा में सप्तम भाव स्थित ग्रह की भुक्ति में विवाह होता है| ५. शुक्रयुक्त सप्तमेश की दशा भुक्ति विवाह करानी वाली होती है| ६. सप्तमेश और शुक्र के घर में चन्द्र और वृहस्पति हो तथा उसके केंद्र में जब गोचर का गुरु आ जाये तब निःसंदेह विवाह काल समझाना चाहिए|