Astrology in Hindi (ज्योतिष शास्त्र)
ज्योतिष शास्त्र त्रिकाल का विज्ञान है | इसे वेदों का नेत्र कहा गया है | भूत और वर्तमान की अपेक्षा भविष्य काल का आयाम विस्तृत होता है | हर एक व्यक्ति में अनन्त सम्भावनाएं छिपी होती हैं | मानव - मन सदैव भविष्य की विविध संकल्पनाओं में गतिशील रहता है | गोपथ ब्राह्मण इस तथ्य को प्रकट करता हुआ कहता है -
"परिमितं भूतम् , अपरिमितं भव्यम्"-५.३.२ || ज्योतिष शास्त्र इस अपरिमित ,अज्ञात और रहस्यपूर्ण भविष्य को उद्घाटित करने वाला दुरूह विज्ञान है | अतैव इस शास्त्र के प्रति लोक की आस्था , विश्वास और श्रद्धा अति स्वाभाविक है | भारतीय जन - मानस इस शास्त्र में निष्ठा के साथ ओतप्रोत है | ज्योतिष शास्त्र मात्र भविष्य का दिग्दर्शक ही नहीं अपितु वर्तमान का सहायक मित्र भी है | यह शुभाशुभ काल का विनिश्चय कर तदनुकूल कर्तव्य का निर्देशक मित्र है | अभीष्ट कामनाओं की पूर्णता को शुभ मुहूर्तों के माध्यम से सफल बनाता है | अन्यथा प्रतिकूल अवसर पर किया गया कार्य दोष-पूर्ण अथवा निष्फल हो जाता है| ज्योतिष शास्त्र के इस महत्वपूर्ण प्रयोजन को स्वीकार करते हुए "मीमांसाशाबरभाष्य" में स्पष्टतः कहा गया है - "भ्रष्टे चावसरेअनुष्ठीयमानो यजमानस्य विगुणः स्यात्" -३.५.४६ | इस प्रकार यह शास्त्र प्रत्यक्ष रूप से लोक व्यवहार में हितैषी तथा परोपकारी शास्त्र है | काशी वास्तु एवं ज्योतिष परामर्श के ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ पंडित सुनील त्रिपाठी जी कहते हैं क़ि आवश्यकता इस बात की है क़ि जातक किसी श्रेष्ठ दैवज्ञ (ज्योतिषी ) के द्वारा अपनी कुंडली की जाँच हर एक वर्ष बिल्कुल वैसे ही कराये जिस प्रकार प्रौढ़ लोग अपने मधुमेह इत्यादि के लिए रक्तजांच कराते हैं एवं चिकित्स्कीय परामर्श लेते हैं , ठीक उसी प्रकार कुंडली में सभी ग्रहों क़ि स्थिति एवं तात्कालिक महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यंतर दशा, प्राण दशा एवं सूक्ष्म दशा इत्यादि के अनुसार शुभाशुभ काल का विनिश्चय कर तदनुकूल रत्न धारण , व्रत , दान ,जप,पूजन-प्रार्थना इत्यादि श्रद्धा एवं विश्वास से करने से जातक के जीवन में आने वाली समस्याएं कम हो जाती हैं तथा सभी ईश्वरीय शुभ फलों का लाभ प्राप्त होता है | |
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