रत्न ज्योतिष का प्रभावरत्न प्रकृति का मनुष्य के लिए अनमोल उपहार है| प्रकृति लाखों साल तक अपने गर्भ में रखकर रत्नों में ऐसा विशेष गुण भर देती है जिसे पाकर मनुष्य सदैव लाभान्वित होता है|हमारे ऋषि मुनियों एवं ज्योतिष शास्त्र विदों ने रत्नों के इन गुणों को प्राचीन काल में ही इससे होने वाले लाभ एवं प्रभाव का वर्णन ज्योतिष के कई ग्रंथों में किया है| रत्नों में तरह तरह के रासायनों की वजह से अलग-अलग रंग प्राप्त होते हैं| उदहारण के तौर पर हीरे में कार्बन की अधिकता तथा गोमेद में मैग्नीशियम की बहुतायत से उनमे वही गुण प्राप्त होता है, हजारों डिग्री तापमान तथा दबाव में रहकर रत्नों की रचना होती है|
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ज्योतिष शास्त्र विदों एवं ऋषियों ने उन्हीं तत्वों व गुड़ो के कारण रत्नों को ग्रहों से संबंधित माना है| यह रत्न ग्रहों के गुण धर्म से काफी मिलते जुलते हैं| इसलिए जब कोई ज्योतिषी किसी जातक को रत्न पहनने की सलाह देता है तो वह रत्न उस जातक में उन गुणों की कमी को पूरा करता है अतः रत्न के पहनने से रत्न का कुछ हिस्सा तथा प्रकाश के संयोग से रत्न का वह तत्व शरीर में प्रविष्ट होकर उस कमी को परिपूर्ण करता हैं|
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आप यूनानी दवाखानों में देख सकते हैं| जिसमे रंगीन बोतलों में दवा अथवा पानी द्वारा मरीज के रोग के हिसाब से इलाज किया जाता है| उदहारण के तौर पर लू लगने पर हरे रंग की बोतल का पानी पिलाने से शरीर की गर्मी कम तथा लू का प्रभाव खत्म होता है| इसी तरह रत्न भी मनुष्य के शरीर पर प्रभाव डालता है| रत्न धारण करने के लिए उसकी मात्रा रत्ती के हिसाब से तय किया गया है|
किसी भी कुण्डली में दशानुसार ग्रह का उपाय एवं रत्न धारण करने से शुभत्व में वृद्धि होती है वैज्ञानिक रूप से विशिष्ट ग्रह का मंत्रोंच्चारण करने से उस ग्रह की रश्मियों की मानव शरीर के चारो ओर सुरक्षा बन जाती है एवं रत्न रश्मियाँ मानव शरीर में प्रवाहित होकर शुभत्व में वृद्धि करती है अतः रत्न का वेदाग होना एवं शरीर से स्पर्श करना अत्यंत आवश्यक माना गया है| रत्न सदैव निर्बल परन्तु लग्नेश, भाग्येश या योगकारक ग्रहों का पहना जाता है|
ज्योतिष के अनुसार रत्न का पूर्ण शुभ फल पाने के लिए इसे शुक्ल पक्ष में निर्दिष्ट वार एवं समय में ही धारण करना चाहिए निर्दिष्ट नक्षत्र में धारण करने से रत्न और प्रभावशाली हो जाता है इसे निम्नलिखित तालिका में दिये गये भार या उससे अधिक भार का लेकर जो पौना न हो जैसे ४-१/४ रत्ती आदि उसे निर्दिष्ट धातु में इस प्रकार जड़वाएं कि रत्न नीचे से अंगुली को स्पर्श करे|
धारण करते समय अपने इष्ट देव का श्रद्धापूर्वक ध्यान करना चाहिए| तत्पश्चात अंगूठी को कच्चे दूध एवं गंगाजल में धोकर शुद्ध करना चाहिए एवं धूप दीप जलाकर संबंधित ग्रह के मंत्र का कम से कम एक माला जप करना चाहिए फिर अंगूठी को धूप देकर निर्दिष्ट अंगुली में धारण करना चाहिए| अंगूठी धारण के पश्चात यथाशक्ति संबंधित ग्रह के पदार्थों का दान करना चाहिए| अगर पेंडन्ट धारण करे तो भी शरीर को स्पर्श करता हुआ होना चाहिए|
यदि आप अन्य कोई रत्न पहले से पहने हुए है तो यह ध्यान रखे कि परस्पर विरोधी रत्न एक साथ न पहने| यह आप निम्नलिखित तालिका से देख सकते हैं| विधिपूर्वक रत्न धारण करने से रत्न के शुभ फल प्रचुर मात्रा में शीघ्र मिलते हैं|
नवग्रह रत्न धारण विधि
रत्न | ग्रह | भार | धातु | अंगुली | वार | समय |
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माणिक्य | सूर्य | ३ रत्ती | सोना | अनामिका | रवि | प्रातः |
मोती | चन्दा | ३ रत्ती | चाँदी | कनिष्का | सोम | प्रातः |
मूँगा | मंगल | ६ रत्ती | चाँदी | अनामिका | मंगल | प्रातः |
पन्ना | बुध | ४ रत्ती | सोना | कनिष्का | बुध | प्रातः |
पुखराज | गुरु | ४ रत्ती | सोना | तर्जनी | गुरु | प्रातः |
हीरा | शुक्र | १/४ रत्ती | प्लेटिनम | कनिष्का | शुक्र | प्रातः |
नीलम | शनि | ४ रत्ती | पंचधातु | मध्य | शनि | संध्या |
गोमेद | राहू | ५ रत्ती | अष्टधातु | मध्य | शनि | सूर्यास्त |
लहसुनिया | केतु | ६ रत्ती | चाँदी | अनामिका | गुरु | सूर्यास्त |
रत्न | मंत्र | साथ में निषेध रत्न |
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माणिक्य | ऊँ घृणी सूर्याय नमः | हीरा, नीलम, गोमेद |
मोती | ऊँ सों सोमाय नमः | गोमेद |
मूंगा | ऊँ अं अंगारकाय नमः | हीरा, गोमेद, नीलम |
पन्ना | ऊँ बुं बुधाय नमः | हीरा, गोमेद, नीलम |
पुखराज | ऊँ बृं वृहस्पते नमः | हीरा, गोमेद |
हीरा | ऊँ शुं शुक्राय नमछ | माणिक्य, मुंगा, पोखराज |
नीलम | ऊँ शं शनैश्चराय नमः | " " " |
गोमेद | ऊँ रां राहवे नमः | " मोती, मुंगा |
रत्न | नक्षत्र | दान पदार्थ |
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माणिक्य | कृतिका, उफा, उषा | गेहूं, गुड, चन्दन, लाल वस्त्र |
मोती | रोहिणी, हस्त, श्रवण | चावल, चीनी, चाँदी, श्वेत वस्त्र |
मूंगा | मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा | गेहूं, गुड़, तांबा, लाल वस्त्र |
पन्ना | अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती | मुंग, कस्तूरी, कांसा, हरित वस्त्र |
पुखराज | पुनर्वसु, विशाखा, पू.भाद्र | चने की दाल, हल्दी, पीला वस्त्र |
हीरा | भरणी, पू.फा. पू.षा. | चावल, चाँदी, घी, श्वेत वस्त्र |
नीलम | पुष्य, अनुराधा, उ.भाद्र | उड़द, काले तिल, तेल काले वस्त्र |
गोमेद | आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा | तिल, तेल, कम्बल, नीले वस्त्र |
लहसुनिया | अश्विनी, मघा, मूल | सप्तधान्य, नारियल, धूम्र वस्त्र |
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